Wednesday, December 31, 2008

हमास को हटाना कौन सा लोकतंत्र है?

बच्‍चों, बूढ़ों, आम नागरिकों पर हमला करके इजरायल हमास को खत्‍म करने का मंसूबा बांधे हुए है। एक बात तो यही है कि अगर हमास को खत्‍म करना है तो नागरिकों पर हमले ही क्‍यों हो रहे है दूसरी और ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बात कि हमास को खत्‍म करने का अधिकार इजरायल सरकार को किसने दिया है? हमास पहले फिलीस्‍तीनी लोगों के वोट पाकर शासन में आया था न कि बंदूक के जोर पर। उसे भंग क्‍यों किया गया? लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों को हटाना लोकतंत्र की किस परिभाषा के अंतर्गत आता है? इसी तर्क से चला जाए तो नेपाल की माओवादी सरकार को भी उखाड़ फेंकना चाहिए अगर वह नेपाली जनता को बचाने के लिए किसी हमले का जवाब दे। दरअसल लोकतंत्र, जिसकी इतनी दुहाई दी जाती है उसको अमेरिका और इजरायल और उनके लग्‍गू-भग्‍गू जब जैसा चाहते हैं वैसा इस्‍तेमाल कर लेते हैं। कुल मिलाकर लोकतंत्र उनके लिए टिश्‍यू पेपर से ज्‍यादा नहीं है जिसे इस्‍तेमाल करने के बाद वो इसे कभी भी कूड़े की टोकरी में फेंक देते हैं। इस ''लोकतंत्र'' में विश्‍वास क्‍या हिलता दिखाई नहीं दे रहा है?
(पुनश्‍च: ताजा खबर है कि इजरायल ने गाजापट्टी की घेरेबंदी में समुद्र के रास्‍ते दवाईयां लाने वाले जहाज 'डिगनिटी' पर हमला करके उसे वापस जाने पर मजबूर कर दिया है। फिलीस्‍तीन के अस्‍पतालों में दवाइयों की भारी किल्‍लत है। और ओबामा जिन्‍हें काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था, ने इस मामले में चुप्‍पी साध ली है। हमारे देश में माकपा नाम की पार्टी ने इन हमलों का विरोध किया जिसके खुद के हाथ सत्‍तर के दशक में हजारों निर्दोष छात्रों-किसानों और हाल में नंदीग्राम और लालगंज के लोगों के खून से सने हैं।)

2 comments:

Vinay said...

नये साल के लिए बधाइयाँ स्वीकारें, आनलाइन मिठाइयाँ तो नहीं खिला सकते! बस स्नेह बनाये रखिए!

संजय बेंगाणी said...

हमास के क्रियाकलाप भी लिखें.