Wednesday, September 24, 2008

घोर अन्याय हैं सीईओ को मारना!

भगतसिंह ने अपनी नोटबुक में मार्क ट्वेन का यह उद्धरण नोट किया है — "लोगों के सर कलम कर दिए जाने को तो हम भयंकर मानते हैं, पर हमें जीवन-पर्यंत बरकरार रहने वाली मृत्यु की उस भयंकरता को देखना नहीं सिखाया गया है जो गरीबी और अत्याचार द्वारा व्यापक आबादी पर थोप दी गयी हैं।" इटालियन कंपनी के सीईओ की ह्त्या को दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बताया जा रहा है। बेशक मजदूरों की एकदम गलती हैं। उन्हें न्याय-फ्याय की लड़ाई लड़नी ही नहीं चाहिए थी। नॉएडा, ग्रेटर नॉएडा से रोजाना मजदूर निकाले जाते हैं। पर वो तो चुपचाप खून के आंसू पीकर बैठ जाते हैं। उस कंपनी के मजदूरों को क्या ज़रूरत थी हक की इतनी लम्बी लडाई लड़ने की। क्या समझते हैं की श्रम विभाग, अदालत, पुलिस, राजनीतिक पार्टियाँ, ट्रेड यूनियन उनके लिए हैं। बड़ी ग़लतफहमी में थे बेचारे। किस्मत के मारे इन अच्छे-अच्छे शब्दों के फेर में पड़ गए। और जब इनका असली रूप सामने आया तो बिफर उठे। अगर चुप्पा मार लेते तो क्या बिगड़ जाता? ज्यादा से ज्यादा दो-चार मजदूर पैसे की तंगी से आत्महत्या कर लेते, या १००-५० घरों में कुछ दिन फाका करना पड़ता या नौकरी छोटने का दंश सारी जिंदगी उन्हें और उनके परिवारों को झेलना पड़ता या नए सिरे से मजदूरी तलाशनी पड़ती और पहले से कम पैसो में काम करना पड़ता। अब देखिये यह तो झेलना ही पड़ेगा वरना देश आगे कैसे बढेगा। वैसे अब पुलिस सजग हो गयी हैं। अबकी ऐसा हुआ तो देश की तरक्की के लिए सख्त से सख्त कदम उठाया जाएगा। आप लोगों ने बहुत बड़ी गलती की। लेकिन आपको मिली सज़ा दूसरे मज्दूरों के लिए एक सबक हो यह सुनिश्चित किया जायेगा।

2 comments:

naveen prakash said...

janab aapne thik hi likha hai. aaj sare ke sare akhbar is khabar se pate pade hai ki bichare ek ceo ki mazdooron ne nirmam hatya kar di. jabki yah ek accident tha. lekin un khabro ko ye log andar ke kisi kone me bhi nahi chapte jab mazdooron ko awaz uthane par sunyojit tarike se hatya kar las bhi gayab kar di jaati hai, jaisa ki noida ki universal glass me dinesh ke sath hua aur muradnagar ki davtara industries me sumit ke sath hua.

जय पुष्‍प said...

अच्‍छा लिखा है कपिल। हम उम्‍मीद करते हैं कि जल्‍दी ही आप हमें जमीनी सच्‍चाई से अवगत कराएंगे।