Tuesday, September 23, 2008

"बाज़ार" समाजवाद यही दे सकता है

चीनी सरकार बता रही हैं ५४००० बच्चे मिलावटी दूध से बीमार पाये गए हैं। संख्या अभी और बड़ सकती हैं। धीरे-धीरे भयावह तथ्य सामने आ रहे हैं कि इसकी जानकारी तो लगभग दो महीने पहले लग चुकी थी लेकिन शायद ओलिम्पिक की वजह से दबा दी गयी। २००४ में भी १३ बच्चे मारे गए थे और मामले को दबा दिया गया था। इस बार भी उम्मीद हैं कि बड़ी मछलियों को बचा लिया जायेगा। यह हैं "बाज़ार" समाजवाद जिसकी तारीफ़ के कसीदे गाने वाले हमारे देश में भी कम नहीं हैं। अपने को "वामपंथी" होने का दावा करने वाले हमारे देश के "लाल तोते" भी इसी "बाज़ार" समाजवाद का रट्टा आजकल लगाते हैं। असल में यह लाल खाल ओढे हुए पूँजीवाद का ही शैतान हैं। जिसके लिए अपनी साख ५४००० बच्चों की जान से ज्यादा कीमती हैं। इतने बड़े पैमाने पर मिलावटी दूध का बिकना चीन के उभर चुके पूंजीपति और सरकार के गहरे रिश्ते को बताता हैं। ऐसे कूडमगजों की भी कमी नहीं हैं जो इसी को समाजवाद समझ कर कोसने लगते हैं। हमारे देश के बुद्धिजीवी तबके को भी इस बात का ज्ञान नहीं हैं कि चीन में समाजवाद का अंत १९७६ में हो चुका हैं। अब वहाँ समाजवाद के नाम पर पूँजीवाद कायम हैं। और पूँजीवाद के लिए सबसे बड़ी चीज रुपया होती हैं चाहे इसके लिए मिलावटी दूध बेचकर हजारों बच्चों की जान खतरे में क्यों ना डालनी पड़े। यह हजारों बच्चे जीवन भर इस बात को शायद सोचे कि उन्हें किस बात की सज़ा मिली हैं। क्या समाज चलाने वाले उन्हें भेड़-बकरियां तो नहीं समझते?

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