Wednesday, May 20, 2009

मिथकों से पैदा होती राजनीति

छत्तीसगढ़ के नये बीजेपी सांसद बलिराम कश्‍यप ने आडवाणी के सर हार का ठीकरा फोड़ते हुए कहा (लिंक देखें) कि ''लोग सिन्धियों पर विश्‍वास नहीं करते''। एक समुदाय के लोगों के बारे में किसी नेता की ऐसी टिप्‍पणी कर देना तो शायद इतना हैरानी पैदा नहीं करता लेकिन इस टिप्‍पणी पर कोई नोटिस न लेना इस अनुशासित पार्टी के बारे में और भी हैरानगी पैदा करता है। इसलिए भी चूंकि मामला सिर्फ किसी पार्टी के नेता पर अपमानजनक टिप्‍पणी से ज्‍यादा एक पूरे समुदाय को अपमानित करने का है।
आमतौर पर समाज में बहुत सारे मिथक मौजूद रहते हैं। ये मिथक पौराणिक पात्रों से लेकर आधुनिक समय की किसी घटना, किसी खास इलाके और कुछ समुदायों के बारे में गढ़े जाते हैं या पैदा हो जाते हैं। प्राचीन ग्रीक में मिथ (Myth) शब्‍द का इस्‍तेमाल झूठी कहानी के तौर पर किया जाता था। बहरहाल आज भी मिथक कुछ सच्‍ची-झूठी बातों से ही बनते हैं। इनमें किसी तर्क या वैज्ञानिक आधार की खोज करना फिजूल है। मिथक और समाज पर इनका असर अपने आप में जानने लायक दिलचस्‍प चीज हैं।
बेशक मिथकों को आमतौर पर हल्‍के-फुल्‍के अंदाज में बोला जाता हो लेकिन इनका असर बहुत दूरगामी होता है। इनका सबसे खतरनाक इस्‍तेमाल पुराने ख्‍यालों को पक्‍का बनाए रखने के लिए होता है। आपको ध्‍यान आ रहा होगा कि पृथ्‍वी के शेषनाग या बैल के सींग पर टिके होने का झूठ किस कदर फॅलाया जाता है। लेकिन इनका एक और खतरनाक इस्‍तेमाल किसी खास समुदाय को किसी खास छवि में बांध देने के लिए भी होता है। कई उदाहरण हैं लेकिन मौजूदा मसले से जुड़ा मिथक प्रचलित है कि ''रास्‍ते में सांप और सिन्‍धी मिले तो पहले सिन्‍धी को मारो''। अपने आप में यह झूठ बेहद खतरनाक, निहायत घटिया और एक पूरे समुदाय का अपमान है।
आम लोगों की बातचीत में ऐसे मिथकों का प्रयोग समझा जा सकता है। लेकिन एक सांसद या लोगों के कहे जाने वाले प्रतिनिधि जैसे जिम्‍मेदार आदमी के मुंह से ये बात सरासर निन्‍दनीय है।
लेकिन ये सांसद हैं बीजेपी के। तो बीजेपी का मिथकों के बारे में क्‍या ख्‍याल है। मेरा ख्‍याल है कि अगर मिथकों को लेकर कोई शोध किया जाए तो बीजेपी नेताओं से दिलचस्‍प बातें सुनने को मिलेंगी। एक खास किस्‍म की पुरातनपन्‍थी राजनीति ने इन मिथकों का इस्‍तेमाल बखूबी किया है। क्‍या किसी को शक है कि इस मिथक को किसने फैलाया है कि ''भारतीय मुसलमान आमतौर पर पाकिस्‍तानी क्रिकेट टीम के साथ होते हैं'' या ''पाकिस्‍तान के जीतने पर मुसलमानों के इलाकों में पटाखे बजते हैं''। ये बातें सिरे से झूठी होने के बावजूद आज लोगों द्वारा मानी जाती है तो इसे बीजेपी या उसके आदि संगठन की सफलता ही मानना चाहिए।
तो मिथकों का इतनी खूबसूरती से राजनीतिक इस्‍तेमाल करने वाली बीजेपी क्‍या सिन्‍धी समुदाय के खिलाफ इस अपमानजनक टिप्‍पणी पर कोई कार्रवाई करेगी। लेकिन सिर्फ इसी मिथक पर क्‍यों ? अगर मिथक वाकई बुरे हैं तो सारे मिथकों को खासतौर पर किसी खास समुदाय या कौम के लोगों की छवि बिगाड़ने वाले मिथकों की भर्त्‍सना करने की शुरुआत होनी चाहिए। क्‍या नहीं ? आपका क्‍या ख्‍याल है...

3 comments:

उम्मतें said...

टिप्पणी के अगले ही दिन सांसद महोदय खेद प्रकट कर चुके हैं ! वे इससे भी कड़वी टिप्पणियाँ करने के लिए चर्चित रहे हैं ! बी.जे.पी.के अंदरूनी हालात की शायद यह 'अभिव्यक्ति' है !

अभिषेक मिश्र said...
This comment has been removed by the author.
अभिषेक मिश्र said...

'Mithakon' ke bal chunav ladne vale iske khilaaf bhala kaise pratikriya denge!