Saturday, June 6, 2009

फासीवाद की दबे पांव आहटों से सचेत करती है गौहर रज़ा की फिल्‍म 'जुल्‍मतों के दौर में'

फासीवाद के कुकृत्‍यों की जितनी हम कल्‍पना कर सकते हैं, इतिहास में दर्ज इनके कारनामे बार-बार ज्‍यादा भयावह और इंसानियत को शर्मसार करने वाले दृश्‍य पैदा करते हैं। गुजरात के दंगों की तस्‍वीरें आने वाले कई सालों तक इस अमानुषिक विचारधारा के नतीजों की याद दिलाती रहेंगी। गौहर रजा की फिल्‍म 'जुल्‍मतों के दौर में' (लिंक देखें) दिखाती है कि फासीवाद आखिर जन्‍म कैसे लेता है। इस फिल्‍म में दूसरे विश्‍वयुद्ध के पहले के जर्मनी में बेरोजगारी और विश्‍वव्‍यापी मन्‍दी के दौर में हिटलर के फासीवादी कुप्रचार द्वारा यहूदियों, कम्‍युनिस्‍टों और तमाम इंसाफपसन्‍द बुद्धिजीवियों को जर्मनी की तंगहाली का कारण बताकर उनके सफाये और फासीवाद के उभार को दिखाया गया है। इस फिल्‍म के दृश्‍य उस दौर के सिहरा देने वाले और इस सबके खिलाफ गहरे गुस्‍से पैदा करने वाली तस्‍वीरे पेश करते हैं।

आज के दौर में यह फिल्‍म बेहद प्रासंगिक है क्‍योंकि एक ओर विश्‍वव्‍यापी मन्‍दी बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और गरीबी के भयावह दुष्‍चक्र को लाने की तैयारी कर रही है दूसरी ओर हमारे देश में फासीवाद की अवतार आरएसएस हिन्‍दुत्‍व की नई प्रयोगशालाओं की जमीनी तैयारी गुपचुप तरीके से बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। चुनावी हार से उनके अभियान में रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता। समाज में नफरत फैलाने के अपने अभियान में लगे ये संगठन हिटलर के दौर को वापस लाना चाहते हैं। इस मायने में यह फिल्‍म हमें इतिहास से सबक लेने और वर्तमान की चुनौतियों के लिए कमर कसने को प्रेरित करती है। पता चला कि यह महत्‍वपूर्ण फिल्‍म अभी तक नेट पर उपलब्‍ध नहीं थी। इस शानदार फिल्‍म को 'बर्बरता के विरुद्ध' ब्‍लॉग को देने के लिए गौहर रजा का शुक्रिया और इस फिल्‍म को नेट पर उपलब्‍ध कराने के लिए संदीप के अनवरत प्रयासों के लिए उनका धन्‍यवाद।

7 comments:

संदीप said...

'बर्बरता के विरुद्ध' और 'ज़ुल्‍मतों के दौर में' के बारे में अपने ब्‍लॉग पर लिखने के लिए शुक्रिया।

Jayram Viplav said...

सुनो ,कपिल स्वामी !
कुकुरमुत्ते कभी सड़े खून पर नहीं उगते
पेड़ लाश लटकने के लिए पैदा नहीं होते
लोहा तलवार बनने के लिए नहीं होता
गुजरात हिंसा के लिए बना नहीं
मगर , क्या एक तरफा नजरिया नहीं तुम्हारा
जो घृणा में जन्मा उसने घृणा भोगा
उसमे प्रेम कहाँ कपिल स्वामी !

Jayram Viplav said...

एकतरफा नजरिया इसलिए :-
क्या दंगों में हिन्दू या मुस्लमान मरे जाते हैं ?
नहीं, दंगों में इंसान मारे जाते हैं .
क्या दंगों में भगवा ही लहराता हैं ?
क्यूँ तुम्हे हरा रंग नजर नही आता है ?
अपनी सेकुलर तहजीब का हवाला देने वाले देश में
मकबूल के नाम पर आर्ट गैलरी बनाया जाता है
पर पूछता हूँ , सलमान रुश्दी और तसलीमा को
-को क्यूँ गरियाया जाता है ?
है कोई जबाव तो बताना ................-

संजय बेंगाणी said...

:)

Unknown said...

टाइटल पढ़कर मैं सोच ही रहा कि "फ़ासीवाद" और बर्बरता का नाम आया है तो जरूर गुजरात नाम शब्द पर उल्टी की गई होगी, ठीक वैसा ही निकला… बर्बरता, कट्टरता, फ़ासीवाद, नाजीवाद आदि शब्दों को संघ-भाजपा-हिन्दुत्व आदि के साथ न जोड़ा तो "प्रगतिशील" कैसे कहलाओगे भाई…। अब तो अगले 5 साल के लिये और पट्टा लिख दिया है जनता ने, जी भर के गाली दो और कोसो… संघ-भाजपा को… क्योंकि सारी बुराईयाँ तो भाजपा-संघ में ही नज़र आती हैं, कांग्रेस तो दूध-शहद की धुली हुई है…। जय हो…

संदीप said...

चिपलूनकर साहब, आपको क्‍या लगता है कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष है और दूध की धुली हुई है, मैंने अपने ब्‍लॉग 'बर्बरता के विरुद्ध' पर जो पोस्‍ट लिखी है, आपने शायद नहीं पढ़ी, वैसे भी ऐसे सब मौकों पर तो आप लोग मौनी बाबा बन जाते हैं। विप्‍लव साहब की बातों को जवाब भी उसी पोस्‍ट में और उसके कमेंट्स में है।
लगे रहिए...

Unknown said...

हे प्रभु,
इन लोगों की आत्मा को शान्ति देना।
ये नहीं जानते कि इनकी आत्मा क्यों बार-बार क्यों अशान्त हो जाती है।

इन्हें राह दिखा प्रभु!!!