यकुम मई
—नरेन्द्र (यकुम मई यानी 1 मई)
दूर देश की बात, सुनाऊं दूर देश की बात, सुनो, साथियो...!
दूर देश अमरीका,/जिसमें शहर शिकागो है विख्यात,/सन अट्ठारह सौ छ्यासी में/यकुम मई की है यह बात/
सभी और दौलत की दमक थी,/सभी ओर रोशन रौनक,/आंखें चकाचौंध हो जाती थी/ऐसी सब ओर चमक।
पर यह किसकी चमक-दमक थी,/थे यह किसके बाग-बजार?
क्या उनके, जो मेहनत पर।/मजदूरी पर रखते घर-बार?
या उनके, जो मजदूरों की/मेहनत पर ही जीते हैं?
मजदूरों का लाल लहू/जो दारू कहकर पीते हैं?
देश-देश में मुफ्तखोर हैं,/देश-देश में मेहनतकश मुफ्तचोर चालाक चोर,//पर वही कमाते सम्पत-जस!
मन्दिर उनके, मस्जिद उनकी/गिरजे उनकी बाजू में पैगम्बर,/औतार, मसीहा, जैसे बाट तराजू में/
दीन भी उनका, दुनिया उनकी,/उनकी तोप और तलवार,/उनके अफसर और गर्वनर,/उनके ही साहब सरकार!
है ऐसे यह दौलतवाले/जिनसे जूझे थे मजदूर,/खून से लथपथ, भूख से टूटे, थके हुए औ चकनाचूर!
यकुम मई का प्यारा दिन था/दिन बहार के आये थे,/ऐसे वक्त में मौत के मारे/ये मजूर क्यों आये थे?
आये ये मजदूर, गोलियां खाने क्यों, किससे खिंच कर?
ये भूखे जीते-मरते हैं/किन आदर्श-असूलों पर?
लिये लाल झण्डा लहराता,/फहराता सबके सिर पर,/आई मजदूरों की टोली, टोली पर टोली घिर कर/
सड़कों पर छा गये मजूरे/जोशीले, सीना खोले!/और सामने पुलिस फौज औ संगीनें, गोली गोले!
हाथ-पांव मेहनत के लिए,
तो पेट न क्या भरने के लिए?
क्या अमीर जीने के लिए हैं?
गरीब मरने के लिए?
घंटे आठ मजूरी के हों/इतनी बात करो पक्की,/मोल खरीदे नहीं कि पीसे/आठ पहर मिल की चक्की
थीं इतनी-सी बात,/मजूरों जिस पर गोली खानी थी!/मजदूरों को आज बात पर/दिखलानी मर्दानी थी!
जो सहेंगे नहीं मेहनती,
जुल्म को जुल्म बतायेंगे!
दुनिया में इंसाफ नहीं
हम दुनिया नई बसायेंगे!
दुनिया के मजदूर एक हो,/एके से ही बरकत है,/जब मौका हो कमर कसो,/तुम समझो—कारबकसरत है
जो दुनिया में पैदा करता,/वह दुनिया का मालिक है,/वह नसीब का भी स्वामी है,/वही खल्क का खालिक है!
जोरो जुल्म जिसको सहना हो,/वह चुपचाप सहे जावे,/जिसको दुनिया नई बनानी हो,/निधड़क आगे आवे!
वह दुश्मन से डरता है कब,/साथिन है हंसिया जाकी?
जिसके हाथ हथौड़ा, उसको
खौफ न मरने का बाकी!
बढ़ा काफला मजदूरों का/कुत्ते लगे भूंकने झट/सरमायादारी ने डर कर,/घबरा कर बदली करवट!
फिर आवाज बुलन्द हुई
वह इंकलाब, फिर, जिन्दाबाद।
हो बरबाद सरमायादारी,
इंकलाब, जिन्दाबाद!
तुरंत किटकिटाई मशीनगन,/धायं-धायं गोली चलती,/भोंकी सीने में संगीनें,/पांवों में धरती हिलती!
शहर शिकागो है विख्यात,/सन अट्ठारह सौ छ्यासी में/यकुम मई की है यह बात/
सुने बहुत है किस्से तुमने राजाओं के, हूरों के,/पर जाना मत भूल खून के
छींटे उन मजदूरों के
मई महीने का पहला दिन है/मजदूरों का त्यौहार,/आज कौल दोहराओ सब मिल/कभी न मानेंगे हम हार!
अड़े रहेंगे, बढ़े चलेंगे, /दुश्मन से बाजी लेंगे, /हाथ हथौड़ा लिए, जुल्म से, खाली दुनिया कर देंगे!
फिर आवाज बुलन्द करो सब—
इन्कलाब, फिर, जिन्दाबाद!
हो बरबाद, सरमायादारी,
इन्कलाब जिन्दाबाद!
4 comments:
हो बरबाद, सरमायादारी,
इन्कलाब जिन्दाबाद!
सामयिक प्रस्तुति। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मजदूर का काम
बस खटना है.
inqulab zindabad
Revolutionary Greetings on May Day.
LAL SALAM.
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