Thursday, April 9, 2009

आज महामनीषी जनयोद्धा राहुल सांकृत्‍यायन का जन्‍मदिन है

आज राहुल सांकृत्‍यायन का जन्‍मदिन है। अपने लेख 'तुम्‍हारे समाज की क्षय' में राहुल ने अपने समाज के बारे में लिखा था कि इसे गदहों के सामने अंगूर बिखेरने में आनंद आता है और असली प्रतिभाएं कहीं अंधेरों में खो जाती हैं। यह बात खुद राहुल पर सही साबित होती है। दुनिया की छब्‍बीस भाषाओं के जानकार, ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं के प्रकांड विद्वान, इतिहास, दर्शन, पुरातत्‍व, साहित्‍य और भाषा-विज्ञान पर समान अधिकार रखने वाले, प्राचीन भाषाओं को संरक्षित करने में योगदान देने वाले राहुल का स्‍थान आज हमारे देश में अपेक्षित महत्‍व के साथ नहीं रखा गया है। निस्‍संदेह सत्ता के विरुद्ध और आम लोगों के पक्ष में खड़े होने वाले लोगों के साथ ऐसा ही व्‍यवहार इस दौर में हो सकता है। राहुल कमरे में बैठकर कागज काले करने वाले विद्वानों में से नहीं थे। अपने स्‍वाध्‍याय से अर्जित ज्ञान को उन्‍होंने उसी आम जनता को वापस लौटाने का जीवन के अंतिम क्षण तक प्रयास किया जो सारे ज्ञान की वास्‍तविक निर्माता होती है। 'वोल्‍गा से गंगा' जैसी अद्वितीय रचना के इस लेखक ने किसानों के साथ सरकार के खिलाफ लाठी-गोली का सामना भी किया था। जनता के इस प्रिय लेखक, जनयोद्धा और 'राहुल बाबा' को शत-शत नमन।
प्रस्‍तुत है उनके प्रसिद्ध लेख 'तुम्‍हारे सदाचार की क्षय' का एक अंश…
'इतिहास'-'इतिहास'—'संस्‍कृति'-'संस्‍कृति' बहुत चिल्‍लाया जाता है। मालूम होता है, इतिहास और संस्‍कृति सिर्फ मधुर और सुखमय चीजें थीं। पचीसों बरस का अपने समाज का तजरबा हमें भी तो है। यही तो भविष्‍य की सन्‍तानों का इतिहास बनेगा? आज जो अंधेर हम देख रहे हैं, क्‍या हजार साल पहले वह आज से कम था? हमारा इतिहास तो राजाओं और पुरोहितों का इतिहास है जो कि आज की तरह उस जमाने में भी मौज उड़ाया करते थे। उन अगणित मनुष्‍यों का इस इतिहास में कहां जिक्र है जिन्‍होंने कि अपने खून के गारे से ताजमहल और पिरामिड बनाये; जिन्‍होंने कि अपनी हड्डियों की मज्‍जा से नूरजहां को अतर से स्‍नान कराया, जिन्‍होंने कि लाखों गर्दनें कटाकर पृथ्‍वीराज के रनिवास में संयोगिता को पहुंचाया? उन अगणित योद्धाओं की वीरता का क्‍या हमें कभी पता लग सकता है जिन्‍होंने कि सन सत्तावन के स्‍वतंत्रता-युद्ध में अपनी आहुतियां दीं? दूसरे मुल्‍क के लुटेरों के लिए बड़े-बड़े स्‍मारक बने, पुस्‍तकों में उनकी प्रशंसा का पुल बांधा गया। गत महायुद्ध में ही करोड़ों ने कुर्बानियां दीं, लेकिन इतिहास उनमें से कितनों के प्रति कृतज्ञ है?

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

स्वामी जी,
राहुल सांकृत्यायन का स्मरण करा कर आप ने बहुत ही अच्छा काम किया है। आप को बहुत बहुत धन्यवाद!
आज राहुल को फिर से पढ़ने और समझने की जरूरत है।

naveen prakash said...

राहुल सांकृत्यायन जी के लेख 'तुम्‍हारे सदाचार की क्षय' का आपके द्वारा दिया गया अंश पढने के बाद उन्हें पढने के लिए मैं काफी उत्सुक हो गया हूँ. मैंने राहुल बाबा और उनकी प्रतिभा के बारे में अख़बारों या किताबों में कभी कुछ नहीं पढ़ा और सुना. आपके द्वारा प्रस्तुत इस लेख से मुझे इस महान वैक्ति को जानने का मौका मिला. अब उन्हें और अपने समाज को और जानने की मेरी जिज्ञासा काफी बढ़ गयी है........ इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद् और राहुल जी को कोटि-कोटि नमन.

संगीता पुरी said...

राहुल सांकृत्‍यायन जी को याद करने और हमें याद दिलाने के लिए धन्‍यवाद ... आलेख भी अच्‍छा है।