Thursday, April 9, 2009

जरनैल का जूता और कांग्रेस का कट्टर 'हिन्‍दू दिल'

जरनैल‍ सिंह के जूता फेंकने पर ब्‍लॉग जगत में बहस चल पड़ी है कि यह काम सही है या नहीं। मुझे लगता है बहस का मुद्दा ही सिरे से गलत है। असल में बात इस पर होनी चाहिए कि कांग्रेस नाम की तथाकथित ''धर्मनिरपेक्ष'' पार्टी दंगे के दोषी व्‍यक्तियों के साथ क्‍यों खड़ी है? क्‍या यह बात कांग्रेस की छुपी हुई और ज्‍यादा खतरनाक सांप्रदायिकता को सामने नहीं लाती है। हम लोग कांग्रेस को लेकर बहुत भ्रम में हैं। बहुत सारे लोगों का यह भी भ्रम है कि धार्मिक कट्टरता के जरिए ही फासीवाद समाज में प्रवेश करता है। उसके रूप बहुत सारे हैं। हमारे देश में उसका एक सोफिस्‍टीकेटेड चेहरा कांग्रेस भी है।
वोटों की राजनीति में बहुसंख्‍यक हिन्‍दू आबादी की भावनाओं को सही वक्‍त पर उभारने में उसे बीजेपी से कम महारत हासिल नहीं है। बल्कि वह बीजेपी से ज्‍यादा शातिराना ढंग से यह काम अंजाम देता है। इसके साथ ही वह अपने उस चेहरे को बचाए रखती है जिससे उसे दूसरी अल्‍पसंख्‍यक आबादी के वोट चाहिए होते हैं। अगर आज के समय में फासीवाद के प्रतीक के तौर पर मोदी को पैमाना माना जाए, तो बेशक 1984 के दंगों में निर्दोष सिखों के कातिल टाइटलर, सज्‍जन को उसी श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए। और यह भी समझना जरूरी है कि ये लोग सिर्फ मोहरें हैं उस राजनीतिक धारा के, जो बातें समाज को जोड़ने और धर्मनिरपेक्षता की करती है। लेकिन अगर उसका दिल चीर कर देखा जाए तो उसमें भी 'हिन्‍दू दिल' धड़कता हुआ नजर आ जाएगा। यह भी देखने वाली बात है कि कांग्रेस ने बड़ी खूबसूरती से अपने इस हिन्‍दू दिल को छिपा रखा है। हालांकि कई मौकों पर यह खुलकर समाज के जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की धज्जियां उड़ाते देखा जा सकता है। यह भी समझने की जरूरत है कि जिस चुनावी लोकतंत्र का हम गुणगान करते नहीं थकते, उसमें चुनावी राजनीति, पार्टियों को खुदबखुद बहुसंख्‍यक आबादी की तानाशाही का प्रतिनिधि बना देती है। कांग्रेस ऐसी ही प्रतिनिधि है।
कांग्रेस का असली चेहरा 1984 के दंगों में बहुत नंगई के साथ सामने आया था। उसकी बड़ी-बड़ी बातें और धर्मनिरेपेक्ष छवि तो निर्दोष-गरीब सिखों को सरेआम सड़कों पर जलाने के साथ ही जल जानी चाहिए थी। पर सत्ताधारी वर्ग की सबसे वफादार पुरानी और चालाक पार्टी का ही कमाल था कि इन दंगों की आग भी उसके नकली चेहरे को झुलसा नहीं पाई। आज भी अल्‍पसंख्‍यक आबादी में कांग्रेस के लिए एक स्‍थान है। इस भ्रम को जितनी जल्‍दी हो सके साफ करने की जरूरत है। 84 के दंगें और राम मंदिर मुद्दे को उभारने में कांग्रेस को रोल को याद रखना चाहिए। दंगों में जिस तरह इस पार्टी ने खूनी कारनामे अंजाम दिये थे उन्‍हें भी याद रखना जरूरी है। समझना होगा कि वक्‍त पड़ने पर कांग्रेस पार्टी मोदी ब्रिगेड से ज्‍यादा खतरनाक हो सकती है। मुझे लगता है कांग्रेस को उसके असली चेहरे-चरित्र के साथ समझने की जरूरत है। और यह भी कि धर्मनिरपेक्षता को उसके सही अर्थों में देखने की जरूरत है न कि कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, समाजवादी पार्टी आदि-आदि जैसी मरियल, नकली धर्मनिरपेक्षता के संदर्भों में।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

aji is chehre ne keval hindu dilin ko nahi un sikh dllon ko bhi chupa rakha hai jinhon ne atankvad ke daur me hinduon ko chun chun kar mara tha magar congress jooton kaa khel nahi khelti varna jooton ke kabil to har neta aur har vo insaan hai jo keval apni biradri ke liye hi anyaye ke khilaf bolta hai magar jab bat doosre ki aati hai to dil hi dil me khush hota hai hame dono ke liye afsos hona chhiye sarkar ki nakami ke liye aur joota fenkne vale ke liye bhi

अनुनाद सिंह said...

कांग्रेस का दिल और वो भी 'हिन्दू' ? कदापि नहीं ! अरे यह 'यूरोपीय दिल' है। यह बांट-बांटकर राज करने का इक्सपर्ट है। १९८४ का दंगा हिन्दुओं को बाँटने का षडयन्त्र था। सिख भी हिन्दू हैं; हिन्दुओं के रक्षक हैं।