मस्ती, उल्लास, रंग-गुलाल,
मिलना, रंगों से सरोबार,
पकौड़े, दही-बड़े,
होली की मस्ती में सतरंगी शुभकामनाएं और आइये गायें नजीर अकबराबादी की यह रचना।
(एमटीएनएल की कृपा से बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आना हुआ है। बहरहाल शुक्र है कि कम से कम होली पर नेट चल रहा है।)
देख बहारें होली की
— नजीर अकबराबादी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़म शीशए (सागर) जाम (शराब का प्याला) छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।
------------------------------------
------------------------------------
गुलज़ार (बाग़) खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।
3 comments:
apko holi ki bahaaren mubarak hon bahut badiya abhi vyakti hai
आपको होली की मुबारकबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
बहुत बढ़िया साहब .अगर इस गीत को सुनने का मन कर रहा हो और फुरसत हो तो इस लिन्क पर चले जायें -
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2008/08/blog-post_6688.html
शुभ होली !
Post a Comment