महमूद दरवेश फिलीस्तीन के सबसे जाने-माने कवि थे।
खबर है कि गाजा में स्कूल फिर से खुल रहे हैं। एक और तबाही झेल कर 1300 लोगों की मौत और ज्यादातर आबादी के बेघरबार होने के बावजूद फिलीस्तीन फिर खड़ा हो रहा है। फिलीस्तीनियों का अपने बच्चों, भाइयों, अजीजों को खो चुकने के बावजूद दर्द झेलते हुए जीने और लड़ने का जज्बा एक मिसाल है। महमूद दरवेश की नीचे प्रस्तुत कविता में इसी जज्बे को उकेरा गया है। बिना बचपन के बड़े होते इन बच्चों का सवाल उस दुनिया से है जो चन्द लोगों की सनक और बाकियों की चुप्पी की वजह से बदस्तूर चल रही है...
मुहम्मद
अपने पिता की गोद में
आसमानी आग से भयभीत
: मुझे बचा लो बाबा
मैं बहुत ऊंचा नहीं उठ सकता
मेरे पंख बहुत छोटे हैं
और हवाएं तेज
और बिलकुल अंधेरा है
गहरा अंधेरा
मुहम्मद घर लौटना चाहता है
बगैर साइकिल या नई कमीज के
चाहता है स्कूल की अपनी बेंच
शब्दों और वाक्यों की अपनी कापी
: हमको घर ले चलो बाबा
ताकि मैं अपनी पढ़ाई कर सकूं
और धीरे-धीरे जिन्दगी शुरू कर सकूं
समुद्र के किनारे
खजूर के पेड़ के नीचे
और कुछ नहीं चाहिए बाबा
और कुछ नहीं चाहिए
मुहम्मदवह सपने देखेगा अगर कोई सपना देख सके
2 comments:
अच्छी पोस्ट के लिए बधाई ......गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
आपका लेख मुझे पढ़कर अच्छा लगा ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
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