गॉसिप अड़डा के सुशील कुमार सिंह पर एचटीमीडिया लखनउ प्रबंधन द्वारा दर्ज करवायी गयी शिकायत मीडिया की गला घोंटने की साजिश का ही नमूना मानी जानी चाहिए। ऐसी कोशिशों का कड़ाविरोध निश्चित रूप से होना चाहिए(जो शुरू भी हो चुका है) । व्यावसायिक मकसद से चलने वाली वेबसाईटें और ब्लॉगों के अतिरिक्त सूचनाओ और विचारों को पहुंचाने के लिए हिन्दी में ढेरों वेबसाईट और ब्लॉग चल रहे हैं। जो धीरे-धीरे ही सही पर अपना एक स्थान बना रहे हैं। इनका पाठक वर्ग तैयार हुआ है और तेजी से बढरहा है। प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया को इसे मजबूरी में मान्यता और स्थान देना पड रहा है।बेशक सूचनाएं और विचार इंटरनेट से पहुचाये जाने को मीडिया माना जाना चाहिए।
सिर्फ करोडों रूपये लगाकर चलने अखबार और चैनलों को ही मीडिया मानना गलत है। बडी पूंजी के साथ सत्ता का अनिवार्यसमीकरण होता है।इसलिए ये वेबसाईट और ब्लॉग एक तो मीडिया के नये उभरते हुए स्वरूप हैं दूसरे स्वतंत्र विचारों का स्पेस यहां ज्यादा होने की परिस्थितियां भी मौजूद हैं। मुझे लगता है लघु पत्रिकाओंकी निर्भीकता भविष्य में यहां स्थानातंरित हो सकती है। इन्हीं वजहों से इस पर हमलों के खतरें भी ज्यादा हैं। जाहिरा तौर पर भविष्य में अखबारों-चैनलों के मालिक मठाधीश पत्रकार सरकार-नेता अफसर और कट़टरपंथी समूह मीडिया के इस नये स्वरूप से चिढेंगे। भविष्य में कई तरह से हमले हो सकते हैं। सुशील कुमार सिंह के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई इसकी पहली कडी है। अत हमें इसे मीडिया के संवैधानिक अधिकारों पर हमला मानते हुए लामबंद हो जाना चाहिए। वेब पत्रकार संघर्ष समिति की पहल एक स्वागतयोग्य पहलकदमी है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनसरोकारों से जुडे मुद़दों को उठाते रहने के अपने जनवादी अधिकार के लिए सभी जागरूक ब्लागर बंधुओं को आगे आना चाहिए। इस मसले पर पहल लेने वाले लखनउ के वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बरीशजी के ब्लॉग विरोध पर इस घटना और इस पर प्रतिक्रिया की विस्तार से जानकारी मिलेगी।
1 comment:
अभिव्यक्ति के लिए खतरे बढ़ने वाले हैं। एकजुटता ही उस का सही प्रतिवाद है।
दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
दीपावली आप के लिए सुख, समृद्धि और ढ़ेर सारी खुशियाँ लाए।
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