Sunday, March 15, 2009

दिल्‍ली मेट्रो की चमक के पीछे का अंधेरा

देश आगे बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं। लेकिन क्या देश में रहने वाले लोग भी आगे बढ़ रहे हैं। जिंदगी बताती है — नहीं बढ़ रहे । आगे बढ़ाने के लिए अपना कंधा छिलवाने वाले लोग गाड़ी में ही जुते हैं हां गाड़ी में सवार लोग जरूर गमगमा रहे हैं।
हमारे देश की तरक्की की छाप छोड़ने वाली जिन चीजों को बड़े फख्र और शान के साथ दिखाया जाता है उनमें एक दिल्ली मेट्रो भी है। जगमगाती, चमकदार, उन्नत तकनोलॉजी से लैस मेट्रो को देखकर खास लोग ही नहीं आम लोग भी थोड़ा अच्छा महसूस करने लगते हैं। इसी की वजह से दिल्लीके ग्लोबल सिटी होने का दावा भी किया जाता है। इसकी चमक-दमक, साफ-सुथरापन, और जगमगाहट लुभाती भी है। लेकिन इस चमक-दमक को पैदा करने वालों की जिंदगियों में कितना अंधेरा जमा हो रहा है इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो।
पता चला है कि मेट्रो को चमकाने वाले सफाई कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी भी नसीब नहीं हो रही है। साप्ताहिक छुट्टी, पी.एफ., ईएसआई और यूनियन बनाने जैसे श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। क्या मेट्रो या कहें देश के विकास की चमक बहुत सारे लोगों के अंधेरे की कीमत पर पैदा करने का रास्ता ही हमें मंजूर होगा। ऐसे बनते जा रहे हालातों में जबकि यह अंधेरा हमारी जिंदगी में भी पसरता जा रहा है।
दिल्ली मेट्रो के सफाई कर्मचारी डीएमआरसी द्वारा अनुबंधित हाउसकीपिंग कंपनियों के अंतर्गत दिहाड़ी पर रखे जाते हैं। डीएमआरसी का दावा है कि वह सारे श्रम कानूनों का पालन करती है। लेकिन पता चला है कि सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखा जाता है। मेट्रो को जगमगाने वाले ये लोग सिर्फ 80-90 रूपये रोजाना पर अपने परिवार को पालने पर मजबूर हैं। हाल ही में डीएमआरसी ने एक सर्कुलर जारी किया। इसमें मजदूरों को उनके कई बुनियादी अधिकारों से वंचित करने का तुगलकी फरमान सुनाया गया है। सबसे बड़ी बात कि मजदूरों को शिकायत होने पर मीडिया और न्यायालय दोनों जगह जाने से रोक लगा दी गयी है। यानी एक नागरिक के रूप में उसके अधिकारों पर भी रोक लगा दी गयी है।
फिलहाल इसके विरोध में जागरूक नागरिकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, छात्रों ने मेट्रो कर्मी अधिकार रक्षा मंच का गठन किया है। इसके ब्लॉग पर बड़ी संख्या में लोग इस मुद्दे पर अपना विरोध भी दर्ज करवा रहे हैं।
मुझे लगता है ऐसी चीजों के खिलाफ खड़े होना चाहिए जो रोशनी के पीछे छिपे अंधेरे और गम को छुपाने की कोशिश कर रही हैं। इस मुद्दे पर आगे और...

3 comments:

जय पुष्‍प said...

मजदूर और नागरिक अधिकारों पर इस तरह के हमलों का संगठित प्रतिरोध जरूरी है। इंसानों को कल पुर्जे बना देने की कोशिशों का मुकाबला करना ही होगा। इस सार्थक पोस्‍ट के लिए आपका धन्‍यवाद। आप जैसे कुछेक ब्‍लागर्स की बदौलत हिन्‍दी ब्‍लागिंग एक सार्थक माध्‍यम बना हुआ है। हैरानी की बात है कि ऐसी फासिस्‍ट हरकत पर समाज में बेचैनी नहीं दिखाई देती।

संगीता पुरी said...

वाकई चमक के पीछे अंधेरा है ... प्रतिरोध आवश्‍यक है।

Ek ziddi dhun said...

इस बारे में अखबारों में छपना वर्जित है। अनिल चमिडया इस बारे में खासे तथ्य जुटाचुकेहैं।