Tuesday, January 27, 2009
सब कुछ धर्म के नाम पर
इन संगठनों के काम करने के तरीकों की खास बातें ज्यादा साफ हुईं हैं पहली, मूल संगठन से असम्बद्ध दिखने वाले ढेरों संगठन खड़े करो और अपने एजेंडे को लागू करो, दूसरी, इन असम्बद्ध दिखने वाले संगठनों को अलग-अलग काम देना, मसलन कर्नाटक में बजरंग दल का काम धर्मांतरण के खिलाफ मुहिम चलाना है, भारतीय जनजागृति समिति का काम देवताओं के अपमान का बदला लेना है और श्रीराम सेना के जिम्मे हिन्दू संस्कृति की रक्षा करना है। (देखें TOI, पृष्ठ 6, 27 जनवरी 09) तीसरी, अपना कानून, अपना संविधान लागू करो, लोगों को उन्हें मानना पड़ेगा, उदाहरण हमारे देश में कभी पबों, कभी पार्कों, कभी सिनेमाघरों में सरेआम सजा देते हमारे ''धर्मरक्षक''! सब कुछ धर्म के नाम पर, धर्म की रक्षा के लिए।
Monday, January 26, 2009
ताकि मैं अपनी पढ़ाई कर सकूं -- महमूद दरवेश

महमूद दरवेश फिलीस्तीन के सबसे जाने-माने कवि थे।
खबर है कि गाजा में स्कूल फिर से खुल रहे हैं। एक और तबाही झेल कर 1300 लोगों की मौत और ज्यादातर आबादी के बेघरबार होने के बावजूद फिलीस्तीन फिर खड़ा हो रहा है। फिलीस्तीनियों का अपने बच्चों, भाइयों, अजीजों को खो चुकने के बावजूद दर्द झेलते हुए जीने और लड़ने का जज्बा एक मिसाल है। महमूद दरवेश की नीचे प्रस्तुत कविता में इसी जज्बे को उकेरा गया है। बिना बचपन के बड़े होते इन बच्चों का सवाल उस दुनिया से है जो चन्द लोगों की सनक और बाकियों की चुप्पी की वजह से बदस्तूर चल रही है...
मुहम्मद
अपने पिता की गोद में
आसमानी आग से भयभीत
: मुझे बचा लो बाबा
मैं बहुत ऊंचा नहीं उठ सकता
मेरे पंख बहुत छोटे हैं
और हवाएं तेज
और बिलकुल अंधेरा है
गहरा अंधेरा
मुहम्मद घर लौटना चाहता है
बगैर साइकिल या नई कमीज के
चाहता है स्कूल की अपनी बेंच
शब्दों और वाक्यों की अपनी कापी
: हमको घर ले चलो बाबा
ताकि मैं अपनी पढ़ाई कर सकूं
और धीरे-धीरे जिन्दगी शुरू कर सकूं
समुद्र के किनारे
खजूर के पेड़ के नीचे
और कुछ नहीं चाहिए बाबा
और कुछ नहीं चाहिए
मुहम्मदवह सपने देखेगा अगर कोई सपना देख सके
Tuesday, January 13, 2009
हिंसा को ताकत समझने की गलतफहमी पालने वाला समाज सामूहिक मानसिक पागलपन का रोगी है।
Saturday, January 10, 2009
गाज़ा में मरने वालों की संख्या 800 हुई
Friday, January 9, 2009
पत्रकारों के साथ बढ़ रही हैं दुर्व्यवहार की घटनाएं
दिल्ली में पत्रकारों खासतौर पर निचले स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। खासतौर पर आम लोगों के जीवन से सीधी जुड़ी समस्याओं को उठाने वाले पत्रकार लगातार गुण्डों-माफियाओं के निशाने पर हैं। 'आज समाज' शकूरबस्ती स्थित सीमेंट साइडिंग में मज़दूरों के ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन की लगातार कवरेज कर रहा था। इससे पहले भी दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर लिखने वाले पत्रकार और पूर्वी दिल्ली में करावल नगर के बादाम मज़दूरों के हालात के बारे में जानने गये पत्रकारों और अन्य कई पत्रकारों के साथ मारपीट की घटनाएं होती रहीं हैं। दरअसल यह बहुत अनपेक्षित भी नहीं है। यदि वास्तव में मीडिया जनपक्षधर मुद्दों को उठाना शुरू करेगा तो जाहिर सी बात है कि तमाम दलाल-गुण्डे-माफिया-ठेकेदार-नेता वगैरह दिक्कत पैदा करेंगें।
वैसे तो सवाल आज खुद मीडिया चलाने वालों की मंशा पर भी उठना लाजिमी है। जनता-जनता की रट लगाने वाले तमाम अखबार एक बहुत बड़े तबके को नजरंदाज किये रहते हैं। अर्जुनसेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार देश में आज 40 करोड़ मज़दूर आबादी है। वैसे बेहद गरीब आबादी को जोड़ देने पर ये आंकड़ा हमारे देश की कुल जनसंख्या के आधे से अधिक बैठता है। इनके बारे में अक्सर तो खबर ही नहीं आती या आती भी है तो ग्रेजियानों जैसी कोई बड़ी घटना हो जाने पर भी और वह भी मालिकों के नजरिये से।
पत्रकारों के खिलाफ बढ़ती जा रही इन घटनाओं पर इसके खिलाफ अखबारों के मालिक भी अपने व्यावसायिक हितों के नाम पर कुछ नहीं करेंगे। इसके खिलाफ केवल और केवल तमाम प्रतिबद्ध पत्रकारों की एकजुटता ही कुछ कर सकती है। आज मीडिया के कारपोरेट-कल्चर में ढलने से चन्द नामी-गिरामी पत्रकारों को छोड़कर जमीनी स्तर पर काम करने वाले छोटे पत्रकारों के लिए काम की स्थितियां लगातार खराब होती जा रही हैं। उनकी रिपोर्ट से अगर कोई भ्रष्ट तत्व नाराज हो जाता है तो इसका दुष्परिणाम झेलने के लिए वह पत्रकार अक्सर ही अकेला रह जाता है। नतीजे के तौर पर सही पत्रकारिता करने के ये व्यक्तिगत प्रयास भी दम तोड़ देते हैं। जरूरत है इन व्यक्तिगत प्रयासों को सामूहिक प्रयासों में तब्दील करने की। यानी ऐसे तमाम प्रतिबद्ध पत्रकारों के एकजुट हो जाने की जरूरत है जिनका सरोकार लफ्फाजी के लिए नहीं वास्तव में आज भी आम लोगों के लिए पत्रकारिता करने से जुड़ा हुआ है।
Thursday, January 8, 2009
इजरायल ने अपनी नाकामयाबी पुख्ता कर ली है
वह चीज है प्रतिरोध। इजरायल हमास को खत्म करने की बात कर रहा है लेकिन वह भी जानता है कि दरअसल उसे खत्म करना है फिलीस्तीनी लोगों का हौसला, उनके लड़ने की ताकत और उनका प्रतिरोध। लेकिन वह भूल रहा है कि जब किसी चीज को दबाया जाता है तो वह उतनी ही तेजी से वापस आती है। इजरायल कुछ लोगों को खत्म कर सकता है लेकिन क्या वह उस गुस्से को खत्म कर पायेगा जो अपने बच्चों की लाश देखकर एक बाप के सीने में पैदा हुआ है, क्या वह उस आक्रोश को गोली मार सकता है जो अपने जवान भाई की लाश देखकर किसी नौजवान के दिलोदिमाग में पैदा हो रहा है। बेबसी से उपजे इस गुस्से को इजरायल या उसके आका अमेरिका की कोई भी गोली, कोई भी रॉकेट, कोई भी मिसाईल खत्म नहीं कर पाएगा। इस प्रतिरोध की जमीन चाहे आज कमजोर हो लेकिन दुनिया के पैमाने पर इजरायल और उसके आका के लूट के साम्राज्य के खिलाफ धर्म के अलावा एक नयी जमीन से विरोध का स्वर उठेगा और उन्हें नेस्तनाबूद कर डालेगा।