Tuesday, August 4, 2009

'चरणदास चोर' पर रोक

छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार ने हबीब तनवीर के नाटक 'चरणदास चोर' पर रोक लगा दी है। बेशक इसके खिलाफ विरोध दर्ज कराया जाना चाहिए। क्‍या यह सिर्फ संयोग है कि छत्तीसगढ़ में सरकार के पक्ष में वैचारिक-सांस्‍कृतिक माहौल बनाये जाने के शुरू किए गए प्रयासों (देखें आशुतोष का लेख) के साथ ही इस नाटक पर रोक लगाने की कार्रवाई हुई है। कहीं यह राज्‍य में जारी सरकारी दमन और सलवा जुडूम की हो रही आलोचनाओं से ध्‍यान भटकाने की साजिश या वैचारिक प्रत्‍याक्रमण तो नहीं है। जो भी हो भाजपा की रीति-नीति को देखते हुए इसे अस्‍वाभाविक बिलकुल नहीं माना जा सकता है।
लेकिन अक्‍सर ऐसी घटनाओं के बाद तात्‍कालिक प्रतिक्रियाओं के बाद सब शांत हो जाता है। एक तय ढंग-ढर्रे के हिसाब से ऐसी घटनाओं के बाद कुछ रस्‍मी विरोध की कवायदें, अखबारों में कुछ लेख, विरोध स्‍वरूप नाटक का जगह-जगह मंचन। ठीक है ये सब किया जाना चाहिए लेकिन इसी तक सीमित होकर रह जाना एक 'झूठी' प्रगतिशीलता के सिवा कुछ नहीं है जो दुर्भाग्‍य से आजकल बहुतायत और फैशन में है। मुझे लगता है कि ऐसी घटनाओं पर तात्‍कालिक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ ऐसे दीर्घकालिक काम किए जाने की जरूरत हैं जो सांप्रदायिकता के खिलाफ जनमानस तैयार करें। हबीब साहब का नया थियेटर का एक हद तक का प्रयोग भी सिखाता है कि आम जनता के जनजीवन की बातों, चीजों को उठाकर प्रगतिगामी विचारों को किस प्रकार लोकप्रिय कला माध्‍यमों से पहुंचाया जा सकता है। ऐसे नाटकों पर रोक लगना न तो पहली कोशिश है न आखिरी। इसलिए ऐसी घटनाओं पर तात्‍कालिक रोष-प्रतिक्रिया के अलावा रचनात्‍मक कामों और संस्‍थाओं को खड़ा करने के बारे में क्‍या सोचे जाने की जरूरत नहीं है?

5 comments:

Arun said...

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रवि रतलामी said...

इससे सिद्ध हो जाता है कि सरकार (और सरकार चलाने वाले) कितने बेवकूफ़ होते हैं!

Science Bloggers Association said...

Aascharyajanak.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

संदीप said...

जो भी ऐसी पाबंदियों से प्रतिरोध की संस्‍कृति को कुचल नहीं पाएगी यह सरकार...

उम्मतें said...

निंदनीय !