चीन की तथाकथित ''कम्युनिस्ट'' सरकार ने एक और तियेनआनमेन को अंजाम देते हुए 100 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया। पश्चिमी चीन में जिंग्जियांग क्षेत्र में प्रदर्शन कर रहे लोगों की आवाज कुचलने के लिए सेना ने भयंकर रूप से दमन किया। प्रदर्शन करने वालों में औरतें और बच्चे भी थे। इन लोगों की मुख्य मांग रोजगार देने की थी। सेना ने टैंकों की मदद से इस प्रदर्शन को कुचला।
दरअसल इस जगह पर कुछ दिनों पहले गुंडियोंग प्रांत में फैक्ट्री में दो मजदूरों की मौत हो गयी थी। चीन में काम की मन्दी के कारण बेरोजगारी तेजी से फैल रही है। वहां के अल्पसंख्यक समुदाय यूइगर में काम देने को लेकर सरकार पर भेदभाव बरतने का आरोप है। इसी वजह से लोगों में भयंकर असंतोष पनप रहा था। दो मजदूरों की मौत के बाद असंतोष सड़कों पर उतर आया। खबरों के मुताबिक मरने वालों की संख्या ज्यादा भी हो सकती है। इस घटना ने बरसों पहले के तियेनआनमेन चौक हत्याकांड की याद ताजा कर दी है। साथ ही दुनिया की नजर में चीनी सरकार का 'कम्युनिज्म' का खोल भी फिर से उतार कर रख दिया है।
4 comments:
हा हा हा, काहे सच छिपा रहे हो कपिल भाई, ये धार्मिक दंगे हैं, मुस्लिमों और स्थानीय चीनियों के बीच और इन दंगों को बाहरी देशों से मदद मिल रही है ऐसा चीन की जिनजियांग राज्य सरकार ने खुला आरोप लगाया है… और इस बार "कम्युनिस्ट चीन" ने मुस्लिमों की खतरनाक तरीके से धुलाई कर दी है… पूरा सच बताया करो यार…
सुरेशजी, आपको सिर्फ इसलिए यह सही लग रहा है कि मुस्लिमों की हत्याएं हुईं हैं। यहां पर आपने अपना स्थाई कम्युनिज्म विरोधी भाव भी किनारे कर दिया है। वाह, आपकी पक्षधरता की लुढ़कन गजब की है।
वैसे आपसे उम्मीद भी नहीं की जा सकती कि आप सतही सच्चाई के अलावा कुछ देख पाएंगें। चीन में अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव वहां के नकली समाजवाद की पोल खोल रहा है। इसे धार्मिक दंगों की शक्ल देना चीन सरकार की बहुसंख्यक हान आबादी के गरीबों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को बांटने की साजिश है। चीनी मीडिया यही प्रचारित कर रहा है। चीन में मन्दी के कारण सामाजिक असंतोष चीनी की पूरी मेहनतकश आबादी में बढ़ता जा रहा है। इस विरोध प्रदर्शन के पीछे मूल वजह यही सामाजिक असंतोष है। चीन सरकार फिलहाल इससे घबराई हुई है। यह हत्याकांड उसी घबराहट का नतीजा है।
तो फ़िर सारे मामले को रोजगार और कम्युनिज़्म जैसे शब्दों से ढँकने की क्या आवश्यकता है? सीधे-सीधे कहो ना कि ये धार्मिक दंगे हैं… रोजगार का इससे कोई लेना-देना नहीं है…। यदि असम में स्थानीय हिन्दू लोग, बांग्लादेशियों से लड़े तब यह रोजगार का मामला नहीं बनता, तब यह धार्मिक मामला बन जाता है…? लुढ़कन तो आपकी भी कम नहीं है… :)
मुसलमान मरें या कम्युनिस्ट चिपलुंकर जी को दोनों ही तरह से फायदा है। और इस मामले में उनकी पक्षधरता का जवाब नहीं है। चूंकि कम्युनिस्ट चीन ने मुस्लिमों की खतरनाक तरीके से धुलाई कर दी है तो यह बात कोई हाय तौबा मचाने की थोड़े ही है। दो दुश्मनों की आपसी लड़ाई का खेल मजे से देखो। भज्जी पाव खाओ और चाय की चुस्की लो। फालतू में ब्लागरों का समय क्यों बर्बाद करो। इससे तो अच्छा हो कि अपनी लिखी कोई घटिया सी कविता/कहानी/चुटकुला ही ब्लाग पर डालो।
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