
आज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की 99वीं वर्षगांठ है। पोस्टमैनों, तांगेवालों और क्लर्कों के नाम शायरी लिखने वाले इस शायर के दिल में जहां दुनिया की खूबसूरत चीजों के लिए बेपनाह मुहब्बत थी, वहीं तमाम नाइंसाफियों के लिए आग के शोले भी थे। इस इंकलाबी शायर को सलाम... (उनकी तीन रचनाएं और इंतसाब)
तुम मेरे पास रहो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले
आसमानों का लहू पी कर सियह रात चले
मर्हम-ए-मुश्क लिये नश्तर-ए-अल्मास चले
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले
दर्द की कासनी पाज़ेब बजाती निकले
जिस घड़ी सीनों में डूबते हुये दिल
आस्तीनोंमें निहाँ हाथों की रह तकने निकले
आस लिये
और बच्चों के बिलखने की तरह क़ुल-क़ुल-ए-मय
बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने
जब कोई बात बनाये न बने
जब न कोई बात चले
जिस घड़ी रात चले
जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, सियह रात चले
पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
न तन में ख़ून फ़राहम न अश्क आँखों में
नमाज़-ए-शौक़ तो वाजिब है बे-वज़ू ही सही
किसी तरह तो जमे बज़्म मैकदे वालो
नहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हा-ओ-हू ही सही
गर इन्तज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तगू ही सही
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया
काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
इंतसाब यानी तांगेवालों, पोस्टमैनों, कारखाने के भोले जियालों के नाम...
4 comments:
फ़ैज़ साहब की वर्षगाँठ पर इन रचनाओं की प्रस्तुति का आभार ।
फ़ैज़...
आभार...
yar kapil bhaii last wali tomere room men lagi hai. Faiz ham sabke dil ke kareeb hain. mohabbat aur inqlab ke nagme gate, rah dikhate
जिगर दारीदा हूँ, चाक-ए-जिगर कि बात सुनो
उम्मीद-ए-सहर कि बात सुनो
अलम रसीदा हूँ, दामन-ए-तर कि बात सुनो
उम्मीद-ए-सहर कि बात सुनो
ज़ुबा बुरीदा हूँ, ज़ख्म-ए-गुलू सेय हर्फ करो
उम्मीद-ए-सहर कि बात सुनो
शिकस्ता पा हूँ, मलाल-ए-सफर कि बात सुनो
उम्मीद-ए-सहर कि बात सुनो
मुसाफिर-ए-रह-ए-सेहरा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से
अब इल्तफात-ए-निगार-ए-सहर कि बात सुनो
सहर कि बात, उम्मीद-ए-सहर कि बात सुनो
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