Thursday, October 22, 2009

जनवादी अधिकार कर्मियों, कवियों-लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों के नाम एक ज़रूरी पत्र - कात्‍यायनी

(गोरखपुर मजदूर आंदोलन के दमन के खिलाफ मजदूरों की एकजुटता और देश भर से इसे समर्थन की वजह से कल यूपी सरकार ने अपने कदम पीछे खींचते हुए सामाजिक कार्यकर्ता तपीश, प्रशांत, प्रमोद व मजदूर मुकेश को बिना शर्त रिहा कर दिया। आज गोरखपुर के लगभग दो-ढाई हजार मजदूर और आम नागरिक, छात्र, बुद्धिजी‍वी, अन्‍य संगठनों के लोग आंदोलन को समर्थन देने के लिए कलेक्‍ट्रेट पर जुटे हैं। हालांकि प्रशासन अभी मजदूरों की मांगों को मानने में हीलाहवाली कर रहा है। एक अहम बात यह दिखाई पड़ रही है कि इस पूरे इलाके की व्‍यापक मजदूर आबादी में इस आंदोलन ने हलचल पैदा कर दी है। कल से वहां पर नागरिकों ने सत्‍याग्रह भी शुरू कर दिया था। वरिष्‍ठ कवियत्री कात्‍यायनी ने नागरिक मोर्चा की ओर से एक अपील जारी की है। इसे नीचे दिया जा रहा है।)
गोरखपुर मजदूर आन्दोलन समर्थक नागरिक मोर्चा

जनवादी अधिकार कर्मियों, कवियों-लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों के नाम एक ज़रूरी पत्र

त्वरित सहयोगी कार्रवाई के लिए आपात अपील - 21 अक्टूबर 2009, गोरखपुर


प्रिय साथी,

गोरखपुर में आन्दोलनरत मजदूरों और उनके नेताओं पर, फैक्टरी मालिकों के इशारे पर प्रशासन द्वारा आतंक और अत्याचार का सिलसिला चरम पर पहुंचने के साथ हमने 'करो या मरो' के संकल्प के साथ सड़क पर उतरने का निर्णय लिया है और आज से नागरिक सत्याग्रह की शुरुआत की है। इस न्याययुद्ध में हमें आपका साथ चाहिए। इसलिए मैं यह पत्र आपको लिख रही हूं। हम हक, इंसाफ और जनवादी अधिकारों के इस संघर्ष में लाठी-गोली-जेल-मौत के लिए तैयार होकर उतरे हैं। हम आपसे इस संघर्ष में सहयोग की अपील करते हैं, भागीदारी की अपील करते हैं, क्योंकि यह आपकी भी लड़ाई है।

हम दमन, फर्जी मुकदमे कायम करके तीन नेताओं की गिरफ्तारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनकी बरबर पिटाई और नौ मजदूरों पर फर्जी मुकदमों के विरोध में नागरिक सत्याग्रह में भागीदारी की अपील करते हैं!

मजदूर नेताओं पर ''नक्सली उग्रवादी'' होने के झूठे आरोप और मालिक-प्रशासन-नेताशाही गंठजोड़ के विरुद्ध हम आरपार की लड़ाई लड़ेंगे!

हमें इस न्याययुद्ध में आपका साथ चाहिए!

- कात्यायनी


आपको शायद पता हो कि गोरखपुर की धागा एवं कपड़ा मिलों तथा प्लास्टिक बोरी के दो कारखानों के मजदूर श्रम कानूनों को लागू करवाने की मांग को लेकर विगत छ: माह से लड़ते आ रहे हैं। गोरखपुर की फैक्टरियों में श्रम कानून का कोई भी प्रावधान लागू नहीं होता और मजदूरों की हालत बंधुआ गुलामों जैसी रही है। ट्रेड यूनियन बनाने की कोशिशें गुण्डागर्दी के बल पर दबा दी जाती रही हैं। पहली बार यह गतिरोध तीन धागा एवं कपड़ा मिलों में टूटा, जब मालिक-प्रशासन-नेताशाही गंठजोड़ के खिलाफ खड़े होकर मजदूरों ने आन्दोलन शुरू किया। उनकी कुछ मांगें मान ली गयीं (जिनसे अब फिर मालिक मुकर रहे हैं) और आन्दोलन समाप्त हो गया। इसके बाद प्लास्टिक बोरी के दो कारखानों के करीब 1200 मजदूरों ने ढाई महीने पहले न्यूनतम मजदूरी सहित श्रम कानूनों के कुछ प्रावधानों को (ध्‍यान दें - कुछ प्रावधान, सभी नहीं) लागू करने के लिए आन्दोलन शुरू किया। इन कारखानों के मालिक कांग्रेसी नेता व पूर्व मेयर पवन बथवाल और उनके भाई किशन बथवाल हैं। इन कारखानों में आन्दोलन शुरू होते ही, सारे मालिक एकजुट हो गये, कई पार्टियों के चुनावी नेता भी उनके पक्ष में बयान देने लगे, प्रशासन छल-फरेब में लग गया और मालिकों के गुण्डों और पुलिस ने आतंक फैलाने का काम शुरू कर दिया।

पिछले ढाई महीनों के दौरान फैक्टरी मालिक और प्रशासन कई बार अपने वायदों से मुकरे। फिर कई बार की वार्ताओं और चेतावनियों के बाद विगत 15 अक्टूबर को मजदूर निर्णायक संघर्ष के लिए कचहरी परिसर में भूख हड़ताल पर बैठे। इसके बाद बर्बर पुलिसिया ताण्डव की शुरुआत हुई। मजदूरों को बलपूर्वक धरनास्थल से हटा दिया गया। महिला मजदूरों को पुरुष पुलिसकर्मियों ने घसीट-घसीटकर और ऊपर उठाकर धरनास्थल से दूर फेंक दिया। फिर 'संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा' (जिसके बैनर तले आन्दोलन चल रहा है) के तीन नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं - तपीश मैंदोला, प्रशांत मिश्र और प्रमोद कुमार को और मुकेश कुमार नाम के एक मजदूर को एडीएम (सिटी) कार्यालय में बातचीत के बहाने बुलाया गया और फिर कैण्ट थाने ले जाकर स्वयं सिटी मजिस्ट्रेट अरुण, एडीएम (सिटी) अखिलेश तिवारी और कैण्ट थाने के इंस्पेक्टर विजय सिंह ने उन्हें लात-घूंसों से बर्बरतापूर्वक पीटा। तपीश और प्रमोद बार-बार कहते रहे कि प्रशांत दिल के गंभीर रोगी हैं, अत: उनके साथ मारपीट न की जाये, पर पुलिस अधिकारी अपनी पशुता से बाज नहीं आये। प्रशांत का इलाज दिल्ली के 'एम्स' और 'मैक्स' संस्थानों में चल रहा है। फिर इन चारों लोगों पर शान्तिभंग और 'एक्स्टॉर्शन' की धाराएं लगाकर जेल भेज दिया गया। जेल में भी बार-बार आग्रह के बावजूद न तो इन सबका मेडिकल हुआ, न ही प्रशांत को कोई डाक्टरी सुविधा मुहैया करायी गयी। इन्हें जानबूझकर अबतक जेल में रखा गया है ताकि मारपीट के मेडिकल साक्ष्य जुटाये न जा सकें और इनका मनोबल तोड़ दिया जाये। प्रशासन ने अब गैंग्स्टर एक्ट लगाने की भी पूरी तैयारी कर रखी है। प्रशासन की तैयारी कुछ मार्क्‍सवादी साहित्य, बिगुल मजदूर अखबार और पेन ड्राइव आदि की बरामदगी दिखाकर ''माओवादी'' बताते हुए संगीन धाराएं लगाने की थी और कुछ अधिकारियों ने मीडिया में इस आशय का बयान भी दिया। लेकिन फिर कुछ पत्रकारों द्वारा ऐसे कदम के उल्टा पड़ जाने के खतरे के बारे में चेतावनी देने तथा व्यापक मजदूर आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने फिलहाल हाथ रोक रखा है। इन चार लोगों के अतिरिक्त अन्य नौ मजदूरों पर भी फर्जी मुकदमे दर्ज किये गये हैं।

यह बताना जरूरी है कि स्थानीय 'चैम्बर ऑफ कॉमर्स', अलग-अलग फैक्टरी मालिक और पुलिस एवं नागरिक प्रशासन के अधिकारी पिछले ढाई महीने से मीडिया में इस आशय का बयान देते रहे हैं कि इस मजदूर आन्दोलन में ''बाहरी तत्व'', ''नक्सली'' और ''माओवादी'' सक्रिय हैं। स्थानीय भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने भी कई ऐसे बयान जारी किये। मामले को साम्प्रदायिक रंग देते हुए उन्होंने यह भी दावा किया कि इस आन्दोलन में माओवादियों के अतिरिक्त चर्च भी सक्रिय है। इस तरह मालिक-प्रशासन-नेताशाही के गंठजोड़ ने मीडिया के जरिये दुष्प्रचार करके मजदूर आन्दोलन को कुचल देने के लिए महीनों पहले से माहौल बनाना शुरू कर दिया था।

यहां यह बताना जरूरी है कि जिन्हें ''नक्सली'', ''आतंकवादी'' और ''माओवादी'' कहा जा रहा है, उनमें से दो - प्रशांत और प्रमोद गोरखपुर और पूर्वांचल के निकटवर्ती इलाकों में छात्र-युवा संगठनकर्ता के रूप में सात-आठ वर्षों से काम कर रहे हैं और नागरिकों के लिए सुपरिचित चेहरे हैं। छात्र-युवाओं के आन्दोलनों के अतिरिक्त शराबबंदी आन्दोलन, सफाई कर्मचारियों के आन्दोलन और सिरिंज फैक्टरी मजदूरों के आन्दोलनों में वे पहले भी अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं। तीसरे साथी तपीश मैंदोला दिल्ली-गाजियाबाद-नोएडा में मजदूरों के बीच काम करने के अतिरिक्त श्रम मामलों के विशेषज्ञ लेखक-पत्रकार के रूप में जाने जाते हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के मजदूरों के गुमशुदा बच्चों पर पिछले वर्ष प्रकाशित उनकी रिपोर्ट राष्ट्रीय अखबारों और प्रमुख चैनलों पर चर्चित हुई थी और दिल्ली हाई कोर्ट तथा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों पर अपने निर्णयों में उक्त रिपोर्ट का हवाला दिया था। 'नरेगा' में भ्रष्टाचार पर प्रकाशित उनकी सर्वेक्षण रिपोर्ट भी काफी चर्चित रही थी। इस समय तपीश मैंदोला मैनपुरी, इलाहाबाद और मऊ में नरेगा के मजदूरों को संगठित करने का काम कर रहे हैं। अब इन लोगों पर गोरखपुर के प्रशासक और चुनावी नेता ''आतंकवादी'' का लेबल चस्पां कर रहे हैं। यह व्यवहार एक बार फिर यह साबित कर रहा है कि सबसे बड़ा आतंकवाद तो वास्तव में राजकीय आतंकवाद ही होता है। यह साबित करता है कि ''नक्सलवाद तो बहाना है, जनता ही निशाना है।'' लोकतांत्रिक प्रतिरोध के सारे विकल्प जब जनता से छीन लिये जाते हैं तो उग्रवादी विकल्प चुनने के लिए कुछ लोगों का प्रेरित होना स्वाभाविक होता है।

फिलहाल गोरखपुर में फैक्टरी मालिकों के इशारे पर प्रशासन का जो नंगा आतंकराज चल रहा है, उसके खिलाफ सात कारखानों के मजदूर धरना और क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं। तपीश, प्रशांत, प्रमोद और मुकेश जेल में बंद हैं। मजदूरों की मांगें स्पष्ट हैं : (1) गिरफ्तार नेताओं को बिना शर्त रिहा करो और फर्जी मुकदमे हटाओ (2) मारपीट के दोषी अधिकारियों के विरुद्ध जांच और कानूनी कार्रवाई शुरू करो, (3) श्रम कानूनों को लागू कराने का ठोस आश्वासन दो।

इस आन्दोलन के पक्ष में हमने भी आर-पार की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरने का निश्चय किया है और हमारी भी वही मांगें हैं जो मजदूरों की हैं। गोरखपुर पहुंचने के बाद आज से हम नागरिक सत्याग्रह की शुरुआत कर रहे हैं। इसके अन्तर्गत दो दिनों तक लोक आह्नान के लिए शहर में पदयात्रा एवं जनसभाएं करने के बाद हम आन्दोलनरत मजदूरों के धरना और क्रमिक भूख हड़ताल में शामिल हो जायेंगे। यदि प्रदेश शासन और प्रशासन के कानों तक फिर भी आवाज नहीं पहुंची तो दो दिनों के क्रमिक भूख हड़ताल के बाद हम आमरण भूख हड़ताल शुरू कर देंगे। हम फर्जी मुकदमों, गिरफ्तारी और दमन का सामना करने के लिए तैयार हैं। इस ठण्डे, निर्मम और गतिरोध भरे समय में, व्यापक जनसमुदाय के अन्तर्विवेक को जागृत करने और आततायी सत्ता को चेतावनी देने के लिए यदि आमरण भूख हड़ताल करके प्राण देना जरूरी है, तो हम इसके लिए तैयार हैं और हम अपनी इस भावना को आप तक सम्प्रेषित करते हुए आपसे हर सम्भव सहयोग की अपील करते हैं।

इस आंदोलन की तमाम खबरों की जानकारी आपको http://bigulakhbar.blogspot.com पर मिल सकती है। आप इन नंबरों पर संपर्क भी कर सकते हैं:

कात्‍यायनी - 09936650658, सत्‍यम - 09910462009, संदीप - 09350457431

ईमेल: satyamvarma@gmail.com, sandeep.samwad@gmail.com

आप क्या कर सकते हैं :

- दिल्ली, लखनऊ, लुधियाना और देश के अन्य शहरों से साथीगण गोरखपुर आकर इस नागरिक सत्याग्रह में शामिल हो रहे हैं। हम आपका भी आह्वान करते हैं।

- हमारा आग्रह है कि नागरिक अधिकारकर्मियों की टीमें यहां आकर स्थितियों की जांच-पड़ताल करें, जन-सुनवाई करें, रिपोर्ट तैयार करें और शासन तक न्याय की आवाज़ पहुंचायें।

- हमारा आग्रह है कि आप अपने-अपने शहरों में, विशेष तौर पर, दिल्ली, लखनऊ और उत्तर प्रदेश के शहरों में इस मसले को लेकर विरोध प्रदर्शन आयोजित करें।

- हमारा आग्रह है कि आप उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, श्रम मंत्री, श्रम सचिव और गोरखपुर प्रशासन के अधिकारियों को ईमेल, फैक्स, फोन, पत्र और टेलीग्राम के द्वारा अपना विरोध पत्र भेजें और हस्ताक्षर अभियान चलाकर ज्ञापन दें। ये सभी पते, ईमेल पता, फैक्स नं. आदि साथ संलग्न हैं।

साथियो,

गतिरोध और विपर्यय से भरे दिनों में वैचारिक मतभेद अक्सर पूर्वाग्रह एवं असंवाद की शक्त अख्तियार कर लेते हें। अवसरवादी तत्व अक्सर अपने निहित स्वार्थी राजनीतिक खेल और कुत्सा प्रचारों से 'जेनुइन' परिवर्तनकामी जमातों के बीच विभ्रमों-विवादों-पूर्वाग्रहों को जन्म देते और बढ़ाते रहते हैं। हम समझते हैं कि असली कसौटी सामाजिक व्यवहार को बनाया जाना चाहिए। न्याय और अधिकार के 'जेनुइन' और ज्वलंत मुद्दों पर जारी संघर्षों में हमें जरूर कन्‍धे से कन्धा मिलाकर साथ खड़े होना चाहिए, तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद। यही भविष्य की व्यापक एकजुटता की दिशा में पहला ठोस कदम होगा।

गोरखपुर में पुलिसिया आतंक राज की जो बानगी देखने को मिली है, वह भावी राष्ट्रीय परिदृश्य की एक छोटी झलकमात्र है। आपातकाल की पदचापें एक बार फिर दहलीज के निकट सुनायी दे रही हैं। सत्ता जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की तैयारी कर रही है। हम उस युद्ध की चुनौती की अनदेखी नहीं कर सकते। हमें संघर्ष के मुद्दों पर साझा कार्रवाइयों की प्रक्रिया तेज करनी होगी। हमें नागरिक स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के आन्दोलन को सशक्त जनान्दोलन का रूप देने में जुट जाना होगा। हमें साहस के साथ सड़कों पर उतरकर सत्ता की निरंकुश स्वेच्छाचारिता को चुनौती देनी होगी। हमें साथ आना ही होगा। एकजुटता बनानी ही होगी।

इसी आह्नान और क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,

(कात्यायनी)

संयोजक

Tuesday, October 20, 2009

गोरखपुर की घटना के विरोध में कल यूपी भवन, दिल्‍ली में प्रदर्शन

(गोरखपुर के मजदूर आंदोलन के दमन और सामाजिक कार्यकर्ताओं को 'नक्‍सली' बताने की कार्रवाई पर हर तबके की प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। इसी घटना के विरोध में कल दिल्‍ली में उत्तरप्रदेश भवन पर प्रदर्शन किया जा रहा है। बड़ी संख्‍या में मजदूर, छात्र, युवा, बुद्धिजीवी, नागरिक और मानवाधिकार कर्मी इस घटना के विरोध में जुट रहे हैं। तमाम इंसाफपसंद लोगों से एक अपील भी जारी की गई है...)

गोरखपुर में पुलिस द्वारा मज़दूर आंदोलन के दमन के विरोध में
यू.पी. भवन पर प्रदर्शन में शामिल हों
21 अक्‍टूबर, 2009, सुबह 11 बजे
उत्तर प्रदेश भवन,
4, सरदार पटेल मार्ग, चाणक्‍यपुरी, दिल्‍ली


साथियो, हमने आपको गोरखपुर में मजदूर आंदोलन को कुचलने के लिए तीन युवा कार्यकर्ताओं को फर्जी मामलों में गिरफ्तार किए जाने की सूचना दी थी, इस मामले में 9 और मजदूरों पर झूठे मुकदमे दायर किए गए हैं। जिला प्रशासन और पुलिस, फैक्‍ट्री मालिकों के भाड़े के गुण्‍डों की तरह काम कर रहे हैं। जिला प्रशासन थैलीशाहों के पक्ष में बेशर्मी की हद पार कर चुका है। 15 अक्‍टूबर को बातचीत के बहाने एडीएम (सिटी) के कार्यालय में बुलाकर तीन वरिष्‍ठ प्रशासनिक अधिकारियों - एडीएम (सिटी), सिटी मजिस्‍ट्रेट और कैंट इंस्‍पेक्‍टर ने खुद इन श्रमिक नेताओं को बुरी तरह पीटा। उन्‍होंने दिल की गंभीर बीमारी से पीड़ि‍त एक युवा कार्यकर्ता तक को नहीं बख्‍शा और उनके साथियों के विरोध और अपील के बावजूद बर्बरता से उनकी पिटाई की गई।
इन सभी को 22 अक्‍टूबर तक जमानत देने से इंकार कर दिया गया है, और पुलिस ''गैंग्‍सटर एक्‍ट'' लगाकर उन्‍हें लंबे समय तक जेल में बंद रखने की योजना बना रही है। यही नहीं, पुलिस-प्रशासन-मालिक गठजोड़ इन युवा कार्यकर्ताओं को ''नक्‍सलवादी'' और ''आतंकवादी'' घोषित करने पर तुला हुआ है और उन्‍हें परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकियां दी जा रही हैं।
मालिकों की शह पर पुलिसिया आतंकराज कायम कर दिया गया है।
मज़दूर आंदोलन पर इस हमले के विरोध में मज़दूरों, विभिन्‍न संगठनों के कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और छात्रों के प्रदर्शन में शामिल हों।
गोरखपुर में चल रहे इस आंदोलन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इस ब्‍लॉग को देख सकते हैं: bigulakhbar.blogspot.com

Sunday, October 18, 2009

यूपी सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं को नक्‍सली बता रही है

(यूं तो गोरखपुर में मजदूर आंदोलन की वजह से हलचल पिछले काफी समय से चल रही थी लेकिन ताजा घटनाक्रम ने हालात ज्‍यादा सरगर्म कर दिए हैं। मजदूरों के डटे रहने से तिलमिलाए उद्योगपति, राजनेताओं (वहां के सांसद यो‍गी आदित्‍यनाथ की अगुवाई में) और प्रशासन ने मिलकर अब दमन का हथकंडा अपनाया है। अनशन पर बैठी महिलाओं तक को पुलिस ने पीट कर हटाया वहीं 4 नेतृत्‍वकारी लोगों को बुरी तरह मार-पीट कर और 'नक्‍सली' होने समेत कई झूठे आरोप लगाकर जेल में डाल दिया है। इस घटना ने सिर्फ मजदूरों ही नहीं बल्कि शहर के छात्रों-युवाओं, नागरिकों और बुद्धिजीवियों को भी आक्रोशित किया है। मजदूरों की जायज मांगों को मानने की बजाय मालिकों की शह पर हुए इस दमनपूर्ण कार्रवाई से सतह के नीचे गुस्‍सा पैदा हो रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्‍या जीने लायक मजदूरी मांगना इस देश में इतना बड़ा अपराध है। जायज मांगों को न मानकर सरकार क्‍या इस व्‍यवस्‍था पर उठते जा रहे विश्‍वास को खुद ही विस्‍तारित नहीं कर रही है। गोरखपुर के ताजा हालात की रिपोर्ट नीचे दी जा रही है।)


गिरफ्तार साथियों ने बताया कि 15 अक्टूबर की रात ज़िला प्रशासन ने तीनों नेताओं को बातचीत के बहाने एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाया था जहां खुद एडीएम सिटी अखिलेश तिवारी, सिटी मजिस्ट्रेट अरुण और कैंट थाने के इंस्पेक्टर विजय सिंह ने अन्य पुलिसवालों के साथ मिलकर उन्हें लात-घूंसों से बुरी तरह मारा। बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए ज़िले के इन वरिष्ठ अफसरों ने युवा कार्यकर्ता प्रशांत को भी बुरी तरह मारा जबकि वह और अन्य साथी बार-बार कह रहे थे कि वे हृदयरोगी हैं और पिटाई उनके लिए घातक हो सकती है। ज़िला प्रशासन फैक्ट्री मालिकों के हाथों किस कदर बिक चुका है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सका है कि जिन अफसरों पर कानून लागू कराने की ज़िम्मेदारी है वे खुद ऐसी अँधेरगर्दी पर आमादा हैं।
वार्ता के बहाने एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाए जाते ही इन चारों साथियों के मोबाइल फोन छीनकर स्विच ऑफ कर दिए गए और सारे कानूनों और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को ताक पर धरकर देर रात जेल भेजे जाने तक उन्हें किसी से बात करने की इजाज़त नहीं दी गयी। जेल जाने के तीसरे दिन 17 अक्टूबर की शाम को जब कुछ साथी जेल में उनसे मिल सके, तब उन्होंने इन घटनाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बार-बार कहने के बावजूद प्रशासन ने उनका मेडिकल नहीं कराया। प्रशान्त दिल की गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं जिसका इलाज आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, दिल्ली और मैक्स देवकी देवी हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली से चल रहा है। यह बताने पर भी उन्हें चिकित्सा सुविधा नहीं दी गयी और दवाएं तक नहीं मंगाने दी गयीं। इसके बारे में कहने पर एडीएम सिटी ने उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां दीं। उन्हें बार-बार आन्दोलन से अलग हो जाने के लिए धमकियां दी गईं।
इसके बाद उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां उनके खिलाफ शांति भंग करने की धाराओं के अतिरिक्त ”एक्सटॉर्शन“ (जबरन वसूली) के आरोप में धारा 384 के तहत भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसके अगले दिन मालिकों की ओर से इन तीन नेताओं के अलावा 9 मजदूरों पर जबरन मिल बंद कराने, धमकियां देने जैसे आरोपों में एकदम झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

जिला प्रशासन एकदम नंगई के साथ मिल‍मालिकों के पक्ष में काम कर रहा है। मजदूरों पर फर्जी मुकदमे लगाए जा रहे हैं जबकि खुद मालिकों के गुंडे मजदूरों को डराने-धमकाने का काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, मजदूर बस्तियों में मकानमालिकों को धमकाया जा रहा है कि वे किराए पर रहने वाले मजदूरों से कमरा खाली करा लें और दुकानकारों को मजदूरों को उधार पर खाने-पीने का सामान देने तक से मना किया जा रहा है।

ऐसे में ज़रूरी है कि गोरखपुर में पूँजी, प्रशासन और घोर मज़दूर-विरोधी सांप्रदायिक शक्तियों (भाजपा सांसद योगी आदित्‍यनाथ) की सम्मिलित ताकत का अकेले मुकाबला कर रहे मज़दूरों और छात्र-युवा कार्यकर्ताओं को हम अपना हर संभव सहयोग और समर्थन प्रदान करें।

Sunday, October 11, 2009

मानवाधिकार आंदोलन की अपूरणीय क्षति है प्रो. के. बालगोपाल का देहांत

प्रो के.बालगोपाल नहीं रहे। मानवाधिकारों और राज्‍यसत्ता के दमन के खिलाफ अनवरत संघर्ष करने वाले प्रो. बालगोपाल का नाम सलवा जुडूम पर उनकी बेहद सटीक विश्‍लेषणात्‍मक रिपोर्ट के बाद पता चला था। प्रो. बालगोपाल ने दर्जनों फर्जी मुठभेड़ों और पुलिस दमन के खिलाफ लंबी लड़ाइयां लड़ीं। उन्‍होंने राज्‍यसत्ता के दमन के खिलाफ आवाज उठाने के साथ-साथ 'आतंकवाद' की राह पर चल रहे नक्‍सली आंदोलन की सोच पर भी सवाल उठाएं। आज के हालातों में प्रो. बालगोपाल का अचानक जाना हमारे देश के मानवाधिकार आंदोलन की अपूरणीय क्षति है और आंदोलन ने अपना एक विलक्षण सहयोद्धा और वैचारिक मार्गदर्शक खो दिया है। सलवा जुडूम पर उनकी चर्चित रिपोर्ट और भारत के राजनीतिक आंदोलन पर एक लेख पढ़ें।

Thursday, October 8, 2009

फ्रांसिस इंदवार की हत्‍या और नक्‍सलवाद

फ्रांसिस इंदवार की हत्‍या ने ऐसे समय में नक्‍सलवाद की सोच को सवालों के केंद्र में ला दिया है जब सरकार इनसे निपटने की तैयारियों को अमलीजामा पहना रही है। एक साधारण कर्मचारी की हत्‍या को किसी भी लिहाज से कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता। एकदम साफ शब्‍दों में इसे नृशंस हत्‍या कहना ज्‍यादा ठीक होगा।
नक्‍सली राजनीति सामाजिक परिवर्तन के दीर्धगामी और श्रमसाध्‍य रास्‍ते को छोड़कर अपने उद्भव से ही शोटकर्ट के रास्‍ते को पकड़ चुकी थी। बल्कि कहना चाहिए कि सही रास्‍ते उसे कभी ठीक नहीं लगे। इस प्रकार की हत्‍याओं से सबसे ज्‍यादा नुकसान जहां जनआंदोलनों को होगा वहीं इनसे जुड़े मानवाधिकार और नागरिक अधिकार के लिए लड़ने वाले लोगों को हो सकता है। ऐसे समय में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई को महज आतंकवादी कार्रवाई में तब्‍दील कर देने वाली नक्‍सली राजनीति से अलग करके सामने लाने की जरूरत आज पहले से कहीं ज्‍यादा है।